Bhajan Marg

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bhajanmarg#58 – 

bhajanmarg#58bhajanmarg#58 :- भक्त :- गुरु जी मुझे ब्रह्मजी का पद नहीं चेहाए।‌ देवराज इनड़रका पद नहीं चेहए। मिर्त्योलोकका समराज़ नहीं वनना। मोक्ष नहीं चेहै। योग सिध्या नहीं चेहे। श्री जी भी नहीं चाहिए मारी जी मुझे राधा नाम अखंड जपने का क्रिपा हो जाये प्रित। 

महाराज जी :-  abhi तो सुनके कह रहे हो 500 रुपया में ललचा जाएगा होगे इतने वड़े त्याग की बात रास्ते में 500 का नोट पढ़ा हो तो कदम नहीं आगे बढ़ा होगे नहीं ये तो सुनके आप बोल रहे हो हम असलियत की बात कर रहे हैं कि अगर रास्ते में अकेले जा रहे हो 500 का नोट पढ़ा हो तो कदम नहीं बढ़ेंगे आगे जाए ये स्थिती जो है जो आप जो जो बोले ये भगवत प्राप्त महापरुष की स्थिती होते हैं जो भगवान सच्चिदानन्द में चित को डुबो दिया है अवसे न पारमेश्ठम न महेंदरधेश्नम न सारोभवम न रसाद्विपत्यम न योग सिद्धिर अपनरभवम वा उसे ये सब नहीं चाहिए न ब्रह्मा का पद चाहिए न देवराजिंद्र का पद क्यों? क्योंकि वो ब्रह्मा को भी दुरलब जो भगवदानन्द है वो उसे प्राप्त हो गया है अच्छा रसगुल्ला और सब भोजनों तो भगवान को भूल जाएंगे वहाँ कह रहें ब्रह्मा का पद नहीं चाहिए योग की सिद्धि नहीं चाहिए देवराज इंद्र का पद बड़े बड़े रिशी मुनियों के मन में छोब पैदा कर दे तो अभी क्या है सुन सुना के बोल रहे है सुन सुना के बोल रहे है अभी माया का प्रभाव तो देखा लई है पर बच्चे उपर बहुत अच्छी मांग है तुम्हारी बहुत अच्छी मांग है सुरूप तो महाराजी से अलग है सुरूप भी अलग है नहीं बहुत अच्छा है बहुत बुद्धी काम कर रही तुम्हारी नाम जब करते रो ठीक है | nextpage

bhajanmarg#59 – 

bhajanmarg#59bhajanmarg#59 :- भक्त :- मुझे नाम जब करते हुए नीद आने लगती है।

महाराज जी :-  तो भोजन पर ध्यान दिजिए। भोजन शात्तिक होना चाहिए। बासी नहीं पाना, बहुत लाल मिर्च नहीं पाना, बहुत तेल के नहीं पदार्थ पाने। प्याज, लेंशुन, मांस, मदिरा, अवक्र भोजन ये सब अगर त्याग कर दोगे, तो सतो गुणी भोजन और छै घंटे की निद्रा और फिर नीद नहीं आना चाहिए। अगर नीद आती तो खड़े होकर भजन करना चाहिए। तेलने लगना चाहिए। थंदा पानी रख ले, मुख में ऐसे डाल लेना चाहिए। नीद भजन में नहीं आनी चाहिए। नीद को नीद के समय में अच्छे से देदो। छै घंटा सोने के लिए देदो और इसके बाद फिर उससे लड़ाई लड़ो। फिर उसको मतलब अलश्य प्रमाद में समय नस्ट नहीं होना चाहिए। जैसे हमें बैठे नीद आ रहे तो हम खड़े हो गए। खड़े भी हमें परिशानी हो गए तो हम तहल रहें। पानी मुँह में डाल रहें। मुँह में पानी डाल रहें, मुँमें पोच रहें, फिर अंभजन में बैठे थे। लड़ाई लड़नी पड़ेगी तब नीन पर विजए प्राप्त होती है। nextpage

bhajanmarg#60 – 

bhajanmarg#60bhajanmarg#60 :- भक्त :- अगर कोई भगवान का नाम लेके अपना आत्महत्या करता है तो क्या उसको भगवत प्राप्ति होगी| 

महाराज जी :- नहीं। जो कानून के विरुद्ध है, वो दंडनी अपराध है, तो उसे अपराद का पोग भोगना होगा। कहीं भी हमारे सास्त्र में या भारती कानून में आत्महत्या करनी की स्वीकरती नहीं है। अगर आप आत्महत्या करते हुए, उपयक करते हुए पकड़े जाए, तो आपको शजा होगी। और भागवती कानून में अधि आत्महत्या करते हुए, तो आप भूद प्रेत की होनी को प्राप्त होगे। ऐसा नहीं, नहीं तो सब लोग नाम बोल करके दरिया में कूद जाए,जैसे कोई नाम ले करके पाप करें, तो नरक को प्राप्त होगा, उशदगती को प्राप्त नहीं होगा। ऐसे ही कि नाम से अंतिम समय में कल्यान हो जाता है, तो उसकी दुरगती हो जाएगी, उसकी प्रेती होनी को प्राप्त होगा। उसका बहुत अधा पतन हो जाएगा, ऐसा कभी नहीं करना चाहेगा। हर समस्या का समादान है, लेकिन हर समस्या का समादान आत्मा साहिट थोड़ी के आप आत्मा साहिट कर लो, ऐसा नहीं है। उसका करोगे तो दुरगती को प्राप्त हो जाओगी।अन्तिम समय यदि भगवान का नाम इसमर्ण में आ जाए, आत्मा साहिट पर अन्तिम समय में बड़ा फर्क है।हमारा समय होता है अन्तिम समय। जैसे अब हमारे प्राण निकलने वाले हैं, हमारे वीकर राधा और प्राण निकल गयें। अब आपको भगवत प्राप्ति नहीं होगी। लेकिन प्राण निकालना वो अन्तिम समय नहीं है, वो आत्मा है। तो उसका भी दर्ण मिलेगा ना आपको, आप अपराद कर रहे हैं। nextpage 

प्रतिदिन राधे जाप :-

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🌸🙏 राधे राधे बोलो, प्रेम से बोलो! 🙏🌸

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bhajanmarg#15 to #17
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भजन मार्ग 15 से 17 में प्रेमानंद जी महाराज द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
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