Bhajan Marg

bhajan marg by premanand ji maharaj (1)

bhajanmarg#20

bhajanmarg#20 bhajanmarg#20:- भक्त:- महाराज जी मुझे stap by stap बताए जिससे मेरा मन शांत हो जाए ?

 

महाराज जी:- Stap by stap चलना चाहती हो तो पहले अपना भोजन सुधारो आपका भोजन शात्विक होना चाहिए और धर्म के दोरा कमाए हुए धन से होना चाहिए। दूसरा आप अपनी नीद शुधारो। नीद में 6 गंटे सोने को होने चाहिए। चार बजे ठीक ब्रममोहुर्त में उठ जाओ। अगर आपको ठीक चलना है भजन करना है तो ये साथ साथ आठ बजे तक जो नौ नौ बजे तक सोते हैं ये स्टेब बाई स्टेब भजन कर पाएंगे उनका जीवन ही ब्यर्थ है और जबान सुधारो हर समय नाम जब करो मौन का अस्रे लो अगर उत्तर देना है तो उचित सब भक्ति होती है पवित्र इंद्रियों के द्वारा. अब जो गंदी बातें, गंद देखेंगे मुबाईल में, गंदे आचरन करेंगे, गंदा भोजन पाएंगे, होटलों का भोजन पाएंगे, मनमानी जागे, मनमानी सोएंगे, मनमानी आचरन करेंगे, अध्यात्म नहीं हो सक देखना ठीक करो, बोलना ठीक करो, सोना ठीक करो, भोजन ठीक करो, और फिर नौ प्रकार की भगवान की भक्ती को अपने हर्दे में धारन करो. भगवान का ही स्रमन, भगवान का ही कीरतन, भगवान का ही स्तमरन, भगवान का ही पूजन, भगवान ही हमारे मित्र हैं, भगवान ही हमारे स्वामी हैं, भगवान को आत्म समर्पण अरचनबधन, इसी से भगवत् प्रेम प्राप्त हो जाता हैं।

 

bhajanmarg#21

bhajanmarg#21:- महाराज जी:- अगर इन तीन ग्रंथों का स्वाध्याय करें श्रीमद भागवत महापुरान, रामचरित मानश और श्री गीता जी तो सम्म्यक रास्ता मिल जाएगा पर मार्थ जैसे पूद्य श्री स्वामी राम सुग्दास जी महाराच की जो ठीका है शादक संजीवनी सम्पूर्ण सा शास्त्रों का सार उसमें गीता व्याक्या में कर दिया है तो पढ़ना चाहिए और सरल भासा में रामचरित मानश है पढ़ना चाहिए जिससे हमारा क्या आचरण होना चाहिए कैसा हमारा धर्म होना चाहिए कैसा हमारा कर्म होना चाहिए ये गीता रामचरित मानश और सरल अथाराहाजार स्लोकों की व्यक्या सेमत भागवत महापुरान। और तो फिर वेदांत है, सास्त्र है…

 

bhajanmarg#22

bhajanmarg#22 bhajanmarg#22:- भक्त:- महाराज जी अध्यात्मिक यात्रा में सबसे बड़ी बादा क्या होती है और इससे कैसे दूर किया जा सकते हैं।

महाराज जी:- तीन बादाएं होते हैं सबसे बड़ी, कंचन, कामिनी और कीर्ती। रुपे का लोग, इस्त्री भोग की आकांक्षा, काम भोग और मान बड़ाय प्रतिष्ठा, ये तीन बादाएं भगवत रापती नहीं होने जीती। कोई तो धन में ही गिर जाते हैं, कोई धन और इस्त्री दोनों में गिर जाते हैं, कोई धन और इस्त्री अगर क्राश भी कर गए, तो आगे मान प्रतिष्ठा में गिर जाते हैं। कोई गुरु क्रपा पात्र बिरला ही होता है, जो कंचन, कामणी, कीर्ती तीनों को ठुक्रा करके, सच्चिदानन्द भगवान का भजण करके, भगवान से प्रेम करे, भगवान के तत्तो का ज्ञान प्राप्त करे, कोई बिरला ही होता है।

 

bhajanmarg#23

bhajanmarg#23:- भक्त:- महाराज जी मैं रोज सुभा से रात तक दुकान पर होता हूँ। महाराज जी मैं रोज सुभा से रात तक दुकान पर होता हूँ। ज़्यादा तीर्थ, गंगा श्णान, इत्यादी ज़्यादा नहीं कर पाता। दूसरों को लेकर ख्याल आता है कि काश हम भी ये सब कर पाते। ये इस विचार से कैसे मुक्ति पाएं।

महाराज जी:- आप दुकान दार हो तो बहुत बड़ी हैं समय आपको मिलेगा। गाहाक में भगवान की भावना करो और इमानदारी की तौल रखो और इमानदारी का मुनाफा रखो और उसके अनुसार वेवहार करते हुए नाम जब करो अपनी दुकान में हो मानो तीर्थ में बैठे हुए हो बेमानी ना करो कम मत तोलो जो भी व्यापार कर रहो बिल्कुल शुद्ध व्यापार करो कि भाई सव का लायें सवाव सोय का देते हैं इसमें कोई बेमानी नहीं है क्योंकि हम व्यापारी हैं हमारे परिवार है उसी से चलता है परिवार जितने भी तीर्थ है वो सब तीर्थ पाद भगवान के हैं और जब आप नाम जब करोगे तीर्थ पाद भगवान का तो आप परमपवित्र हो जाओगे वो वाह और अभ्यंतर दोनों से पवित्र हो जाता है जो कमलनें भगवान स्री हरी का इसमरन करता है तो अब आपको कौन से तीर्थ जाने की ज़रूरत कमलनें भगवान स्री हरी का हरी सरणम, हरी सरणम, हरी सरणम परमपवित्र हो आप 

 

bhajanmarg#24 

bhajanmarg#24 bhajanmarg#24:-भक्त:- महाराज जी मैंने संकल्प लिया था बाबा विश्वनाजी के सामने की ब्रमचरन नस्प नहीं करूँगा लेकिन कुछ मिहने में तूट गया है प्रभू बचालो क्या भवान मुझे माफ़ करेंगे अभी।

महाराज जी:- संकल्प से काम नहीं चलता सावधानी से काम चलता है अगर आप हस्तमेतुन का अभ्यास द्रड किये हैं, आप मुबाईल में गंदी बाते देखते हैं, आप गंदा संग करते हैं, गंदा आचरन छोड़ो, कसम संकल्प नहीं करना चाहिए, कसम नहीं खानी चाहिए, हम अभ्यास रत हैं, हम ऐसा प्रयास करेंगे कि जीवन में � कसम नहीं का रहे हैं, अगर हम प्रयास में फेल हो गई, फिर हम प्रयास करेंगे, फिर प्रयास क़ेंगे ऐसे करना चाहenas नहीं कानी सारी है, कसम किसी बात की नहीं समझो मेरे हाथ तूट गए हैं, मैं बिल्कुल नहीं करूँगा। अगर ज़्यादा मन परिशान करें तो बाहर निकल कर तहलने लगो।राधा, राधा, राधा, राधा, राधा। उससे बचो।अगर आप ऐसी क्रिया को शायोग करोगे तो फिर तो पतन होई जाएगा। 

प्रतिदिन राधे जाप:-

राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
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राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
राधे

🌸🙏 राधे राधे बोलो, प्रेम से बोलो! 🙏🌸

bhajanmarg#25 to #28

Summary
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bhajanmarg#15 to #17
bhajan marg
भजन मार्ग 15 से 17 में प्रेमानंद जी महाराज द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
"Bhajan Marg par adhyatmik gyaan aur bhakti ka margdarshan."
premamand ji maharaj
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premanand ji maharaj
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4 Comments

  1. Radhe radhe 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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