bhajanmarg#29
bhajanmarg#29:- भक्त:- महाराज जी कल एक मिले थे, वो कह रहे थे कि अभी कुछ नहीं करते। कह रहे, मैं बहुत बड़ी कमपनी खोलूंगा, फिर उसमें करोडर पे आएंगे। अगर एक करोडर पे अभी बैंक में जमा हो गया, तो उसका 70,000 बियाज आएगा। कह रहे कि बड़े अकांट हो जाते हैं, तो सरकार की नजर हो जाती है। फिर सरकार की नजर होगी, तो मेरा बैंक जब तो हो गया, तो फिर मेरा ब्यारत की चिंदा आ गया।
महाराज जी:- एक थे उली, उली की जैसे कतल है, उनका एक भैस लाऊंगा। उसका दूद निकालूंगा, फिर उसका घी बनाओंगा। और जब घरा घी का भर जाएगा, तो उसे बजार में बेचूंगा। बजार में बेचूंगा, तो ऐसे कई घरे हो जाएंगे। और ऐसे कई घरे जब बजार में घी का बेचूंगा, तो खुब रुपया मिलेगा। और जब रुपया मिलेगा, तो दुलेहन बढ़िया मिलेगी। दुलेहन मिलेगी, तो तीन-चार बच्चे होंगे।और जब बच्चे होंगे, हमारा कार नहीं मानेंगे। तो हम कहेंगे, हमारा कार नहीं मानते।इतने में घी का घरा रखा था, वो भी पूट गया। अब बच्चे भी नहीं, पतली भी नहीं। इतना सोते-सोते मर जाता है। होता कुछ नहीं, मर गया। जो मनुष्य जीवन इतना कीम्ती मिला था भगवत प्राप्ती के लिए, ब्रह्मभोद के लिए, वो भी हाथ से निकल गया। सुर, कुछ, पसु, पक्षी, नाना प्रकार की उनियों में उसे जाना होता है।
bhajanmarg#30 – नाम जप (भाग-1)
bhajanmarg#30:- महाराज जी:- जब एक करोड नाम जप होता है, तब तन्विस्थाम की सुध्य होती है। सरीर निषपाप हो जाता है एक करोड नाम जप करने पर। लजोगुण, तमोगुण का नास हो जाता है, हर समय शुद्ध सतोगुण की स्थिती रहती है। शुद्ध सतोगुण में हर समय भगवान का भजन होता है। एक करोड नाम जप में इतने लाब होते हैं, सरीर निषपाप हो जाता है, लजोगुण, तमोगुण का नास हो जाता है, सतोगुण की स्थिती रहती है, और आगे रोग होने वाले जितने पाप बीज हैं, वो सब नस्ट हो जाते हैं।और जो रोग हो गया है, उसके सहने के सामर्थ मिलती है। ततकाल उसके अंदर भावनाओं का प्रवाह फूट पड़ता है। और उन भावनाओं में वो डूबा रहता है। और स्वपन में बड़े बड़े देवता, बड़े बड़े रिशी मुनी, बड़े बड़े संत भक्त यह मिलते हैं और वारतालाप होता है। बिल्कुल यह थार्थ, जैसा लिखाया इसा है।अब जब इस तरह की स्थिति उसके होती है तो उसका अनुभव भजन में और गाध होने लगता है। तो दो करोड भजन होगा। जब दो करोड नाम जप हुआ तब स्थिति क्या हुई।
bhajanmarg#31 – नाम जप (भाग-2)
bhajanmarg#31 :- महाराज जी:- जब दो करोड नाम जप हुआ, तवि स्थिती क्या हुई।उसके धन का अभाव जो था, वो खतम हो गया। मनुष्य के अंदर रहता है, मैं ईश्वरेवान मनू, धन्वान बनू, भावय खतम हो जाता है।अगर धन चाहिए, तो निर्धनता की पीड़ा, जो उसके अंदर सता रही थी, वो खतम हो जाती है।उसके आवश्चकता से बढ़कर धन भगवान देने लगते हैं, जब दो करोड नाम जप हुआ। माला तो माला से नहीं, कि जेका गई की नहीं।दो करोड नां जप करने वाले साधक अंदरे से धन की चाह खतम हो जाती है। भगवान दो परकार उसे चाह पूर्ण करते हैं, एक चाह हटा करके अचाह करिए और एक धन दे करके चाँ से अचाह कर देते ही।डेन्यता, दूख, भठकना45 ये साब कतम हो जाता हाे धरिद्रता के जितने उपद्र अते साब कतम हो जाता है उसमे शुक ही सुखशा जाता है जैसे 2 करोर नाम जब करनेवा रे के थोड़े से धन का अभार हो जाता है। सारी अनुकूलताएं उसको घेर लेती हैं, सारे वैभव उसको घेर लेते हैं, जैसे समुद्र बिल्कुल नहीं चाह करता पर नदियां दोडती हुई समुद्र में अपने आप समाध आती हैं, ऐसे ही दो करोड नाम जापक के पार अपने आप सुख समर्धी घेर लेती हैं, दो करोड के बाद आगे बढ़ा तो अंतह करणि स्थान हैं, परम्पवित होने लगता हैं, दो करोड नाम जबके बाद जब धन की चाह मिट गई, एक करोड में सुना, दो करोड में, अब तीन करोड में |
प्रतिदिन राधे जाप :-
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