Bhajan Marg

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bhajanmarg#70 – मदद करने के बाद लोग क्यों बदल जाते हैं?”

bhajanmarg#70bhajanmarg#70 :- भक्त :- तो ये कह रहा है की मैं किसी की भी मदद करता हूँ तो मदद लेने के बाद वो इंसान बदल सा जाता है उससे मैं मदद करूँ, आगे या किसी की मदद करने।

Premanand ji maharaj :-  देखो मदद करो इंसान से बदले में कुछ चाहो भगवान से सर इनको तुमने ₹500 दिया, उसका हिसाब मालिक देगा इनसे ले। इनसे इच्छा मत करो की लौट कर आपको थैंक यू बोले की नहीं ऐसा हो जाते हैं। हाँ हो जाने दो ना, हमने परोपकार किया इसका फल भगवान मुझे देंगे, इंसान क्या देगा उसको तो आपने स्वयं दिया है। यही हमारी कमजोरी है की हम दूसरों को जब सुख देते है, जिसे वस्त्र, भोजन, उद्याप ऐसा सहयोग। जो भी देते है उसके बाद में हम चाहते है की वो हमसे नम्र रहे, वो हमसे कृतज्ञ रहे। वो हमें प्यार करे, वो हमारा सम्मान करे लेकिन नहीं करेगा क्योंकि वो माया के द्वारा प्रेरित है। ज्यादा आप उपकार करोगे तो आपको बुद्धि हीन समझेगा लेकिन आपको अपनी स्थिति में रहना है की इस व्यक्ति के आचरण से या इस व्यक्ति के व्यवहार से मुझे दुखी नहीं होना। अगर व्यक्ति को आपने पानी पिलाया और हाथ जोड़कर बोल दिया, धन्यवाद आपने पानी पिलाया तो हो गया आपका पानी पिलाने का हिसाब और अगर वो चला गया तो पानी पिलाने का हिसाब ठाकुर जी देंगे, जब भगवान देंगे तो बहुत ज्यादा देंगे तो हमको व्यक्ति से धन्यवाद लेने से क्या मतलब है? हम तो मनाएंगे को हमें धन्यवाद न दे चुपचाप चला जाए हम प्रभु से लेंगे। nextpage

bhajanmarg#71 – भगवान हमें क्यों नहीं दिखाई देते?”

bhajanmarg#71bhajanmarg#71 :- भक्त :- महाराज जी मेरा सवाल है कि हमें भगवान दिखते क्यों नहीं महाराज?

Premanand ji maharaj :-  इन नेत्रों की क्षमता नहीं है। ये जो नेत्र बने हैं ये त्रिगुण माया से बने हैं। ये तीन ही देख सकते हैं। शत्रुगुण रजोगुन तमुगुण और शत्रुगुण रजोगुन तमुगुण से बनी हुई वस्तुएं देख सकते हैं। तो जब तक हमारे। नेत्रों में प्रेम नेत्र नहीं आएँगे, तब तक हम भगवान को नहीं देख सकते। जो हमारे हृदय में प्रेम नेत्र है, वह जब खुलते हैं, इन्हीं नेत्रों में उनका प्रकाश होता है। इन्हीं नेत्रों से फिर वह देख पाते हैं क्योंकि इन नेत्रों में प्रेम नेत्र प्रकाशित हो जाते हैं। जैसे विराट रूप देखने के लिए भगवान ने अर्जुन की दृष्टि में दिव्य दृष्टि दी तो विराट रूप देख पाए। श्री कृष्ण रूप तो बराबर देख रहे थे। ऐसे ही सर्वत्र भगवान विराजमान हैं, सबके हृदय में भगवान विराजमान हैं। जब तक हमारे हृदय में प्रेम नहीं होगा, तब तक हम नहीं देख पाएंगे। तो प्रेम। का दुर्भाव तब होता है, जब वो नाम जब करे। तो आप नाम जब करते हो और नाम जब करो ठीक है। फिर भगवान जी आप से आके हाथ मिला लेंगे ठीक है ना तयार रहना ख़ुब नाम जप करो| nextpage

bhajanmarg#72 – जीव-सेवा करने पर भगवान कैसे प्रसन्न होते हैं?”

bhajanmarg#72bhajanmarg#72 :- Premanand ji maharaj :- एक बार एकनाथ जी महाराज गंगोत्री से जल ले करके रामेश्वरम जी में चढ़ाने जा रहे थे, रामेश्वरम जी पहुंचने ही वाले थे तो देखा एक पशु गधा प्यास से व्याकुल किए जबान बाहर निकाले पैर पर पड़ा रहा है। उनको नहीं देखा गया। कलश था गंगा जी का गए और ऐसे गोद में लिया और पूरा कलश गंगा जी का लोगों ने रोका भी जो उनके साथी जन थे की अब रामेश्वर जी कितनी दूर रह गए, पास रह गए इतनी दूर से अब हमारी श्रद्धा यही हो गई। यही रामेश्वर है जब ये प्यास से तड़प रहा है। पूरा जैव घड़ा पिलाया तो सब गए, सब रामेश्वर जी चढ़ाने, वहीं भगवान शिव प्रकट हो गए। यदि हम भागवत भाव से किसी पशु पक्षी की भी सेवा कर दे तो भगवान की सेवा हो जाती है। नामदेव जी महाराज ने जब एक कुत्ता रोटी लेकर भगा। तो घी का कटोरा लेकर भागे प्रभु रूखी मत खाओ, थोड़ा घी लगवा लो। तो कुत्ते में से भगवान प्रकट हो गए। बिठ्ठल भगवान कुत्ते में से प्रकट हो गए तो अगर हम पशु पक्षी की भी सेवा करें तो भगवान उनमें भी विराजमान है। भागवत भाव से करें तो बढ़िया बात हो जाएगी वो भक्ति योग बन जाएगा। nextpage

 

प्रतिदिन राधे जाप :-

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🌸🙏 राधे राधे बोलो, प्रेम से बोलो! 🙏🌸

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bhajanmarg#15 to #17
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भजन मार्ग 15 से 17 में प्रेमानंद जी महाराज द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
प्रेमानंद जी द्वारा निस्वार्थ सेवा, दिव्य दृष्टि, पशु सेवा:।
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