Bhajan Marg

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bhajanmarg#77 – कैसे थे पूज्य महाराज जी के पूज्य माता-पिता?

bhajanmarg#77bhajanmarg#77 :- Premanand ji maharaj :- इस शरीर के जो पिता बड़े भक्त थे, कभी जूता पहन के हल नहीं जोता, नंगे पैर हल जोता और संतो की सेवा तो हम लोग जब छोटे छोटे थे, चार चार संत आ जाते, सबके चरण दबाव चरण दो चरना मृत पियो, उनके पास बैठना वो श्री राम जय राम जय जय राम कीर्तन कराती, कीर्तन करते, भागवत हो रही, वही बैठ के सुनते बचपन से भागवती सब परमाणु मिले। माता जी को तो क्या कहना, साक्षात देवी बस वो ऊपर एकांत दुखंडा मकान था। ऊपर एकांत में बैठे राधा कृष्ण की छवि रखे। वो तो जप में ही अधिक लगी रहती थी। उसका प्रभाव देखो किया। हमारे पिताजी भक्त, माताजी भक्त तो हम भक्त, हमारा परिवार का सब पूरा सदस्य, भक्त बहने, भाई सब भक्त हैं तो जैसे हम परमाणु अपने परिवार को देते हैं वैसा ही हमारा परिवार होता है। तो हम माता पिता का विशेष योगदान होता है पुत्र के। पुत्र की उद्दन्डता या सौम्यता , यह माता पिता से है। अब आप गंदे आच्छरन कर रहे हो, उल्टा सीधा खा रहे हो, उल्टे सुझदी बाते कर रहे हो, बीडी मगा रहे हो, आप सराब पी रहे हो उनके सामने, वो ही संस्कार पढ़ रहे हैं उनके, यह तो बहुत सावधानी की ज़रूरत है। nextpage 

bhajanmarg#78 – एक ज्ञानी पुरुष किसी व्यक्ति में क्या देखता है?

bhajanmarg#78bhajanmarg#78 :- Premanand ji maharaj :- जब प्रह्लाद जी को श्रृंगार करके केयदु जी ने भेजा हिरण्यकश्यप के पास और पिता श्री के के संबोधन किया लेकिन गोद में बैठा लेने के बाद पूछा बेटा तुम्हें सबसे अच्छा क्या लगता है? तो उनका भगवान श्रीहरि? भगवान श्रीहरि की नवधा भक्ति श्रवणम् कीर्तनम् स्मरणम् विष्णुपाद सेवनम् अर्चनम मदनम् दास्यम सख्यात निबेन उठा के पटक दिया मेरे दुश्मन का नाम लेता है तू तू शत्रु पक्ष का हो गया। तेरी ऐसी बुद्धि किसने बदल दी? तो का दैत्यराज भाषा बदल गई। पिताश्री नहीं ना अदैत्यराज और भगवान दुलार कर रहे हैं। उनके चरणों में मस्तक रखे हुए हैं। रनकस्यप को गोदी में लेकर फाड़े हुए बहते हैं, तो वहाँ पिता नहीं है, वहाँ भगवान का विरोधी है। अज्ञानी पुरुष ये देखता है कि ये मेरा पिता है, ये माता है, उक्यानु पुरुष देखता है कि ये धर्मिक है या अधर्मिक है। nextpage

 

bhajanmarg#79 – क्या कारण है कि हम अपना पिछला जन्म भूल जाते हैं?”

bhajanmarg#79bhajanmarg#79 :- भक्त :- हमें इस जन्म में अच्छे या बुरे भोग भोगने होते हैं। उन्हें इस जन्म में भोगते हुए हमें स्मरण क्यों नहीं हो पाता कि कौन से अच्छे या बुरे कर्मों का फल हमें मिल रहा है ताकि हम उन भोगों को भोगते? हुए 

Premanand ji maharaj :- माया विस्मृत कर देते। नौ महीना माँ के गर्भ में रहे। एक सेकंड की भी याद नहीं परसों आपने दोपहर में क्या खाया था तो आपको सोचना पड़ेगा, परसों बड़ा मेहनत करनी पड़ेगी। तब परसों दोपहर में क्या फाया था? फिर आप निर्णय कर पाओगे पूर्जन की तो छोड़ो ऐसा है माया का विस्मरण जाल। वो हमारी हर बात को विस्मृत कराती जाती है। तो अब जैसे आप भजन करो और भगवान में चित्त जुड़ने लगे, माया से ऊपर उठने लगे तो आपको ज्ञान होने लगेगा। पुरजन्य में हम ये थे हमारे द्वारा ये आचरण हुआ, उसका ये फल हुआ। या चरणों जितना आप भजन के द्वारा पवित्र होते जाएंगे उतने आपको स्मृति जागृत होती जाएगी और जितना आप माया में लिप्त होते जाएंगे उतने विस्मृति होती जाएगी। ये माया का खेल है जो जन्म जन्मांतरों की कर्मों का विश्मरण कराखे, हमको आसक्त कियी हुई इस शरीर में, तो माया के कारण किस कर्म का ये दुख मिल रहा है और किस कर्म का ये सुख मिल रहा है ये ज्यान इसे ले रहे हूं बारा अगर आप खुब भजन करें तो फिर पता चलने लगता है| राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे nextpage 

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bhajanmarg#15 to #17
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भजन मार्ग 15 से 17 में प्रेमानंद जी महाराज द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
"प्रेमानंद महाराज जी का आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर प्रवचन।"
premamand ji maharaj
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