bhajanmarg#18
bhajanmarg#18
bhajanmarg#18 :-भक्त:- राधा राधा, राधा। राधा राधा। राधा राधा, राधा, राधा। राधा शिवधाम की जय शत्रुदेव भगवान की। जय।
भक्त:- राधे राधे गुरु जी| भावना शर्मा जी बैंगलोर से। राधे राधे महाराज जी गुरूजी, कमाई का कितना हिस्सा धर्म के मार्ग पर लगाना चाहिए अपनी अपनी सामर्थ्य?
महाराज जी:- हमारी बात समझो, अगर कोई आपको अक्सीडेंट का केस दिखाई दे रहा है, आप दौड़ पड़ो उसे उठाओ, गाड़ी में डालो। अस्पताल ले जाओ, जितना खर्चा लगे लगाओ, कोई भूखा दिखाई दे रहा है, अपने भोजन के ताल उसे दे दो, कोई ठंडी से कांप रहा है अपना कपड़ा उसे दे दो। ऐसा नहीं है कि हम महीने में निकाल करके रखे हमें जहाँ जरूरत पड़ी। हाँ, बहुत आ रहा वो करोड़ों में तो बहुत मिशन खुले। ऐसे जो धर्मार्थ मिशन हैं उनमें आप दे सकते हो, लेकिन गृहस्थी में जितना आ रहा है अपने परिवार का पोषण करो, भगवान की घर में सेवा विराजमान करो। अतिथि सेवा करो, भूखे टूटे के साधु, संत, महात्मा, बीमार, पशु, पक्षी कोई भी हो उसकी सेवा की भावना रखो। उसमें भी ये नहीं देखना है कि हमारा दशांत खत्म हो गया। अब तो अब हम क्या खर्चा करें? नहीं हम दो 4 दिन भले भूखे रह जाए लेकिन आज ये बीमार आदमी है। इसको हम दवाई दिलाते हैं, आज इसकी हम सेवा करते हैं। सेवा करने की भावना रखो, दान देने की भावना मत रखो। सेवा करने के लिए हमारे पास जो कुछ तन मंथन है, अगर जरूरत पड़े हम दूसरों की सेवा में, तन से भी लगेंगे, मन से भी लगेंगे और धन से भी लगेंगे। हमारी भावना तो ये है। की तो दीम वस्तु गोविंदम तो हमें वो समर पाए। हे भगवान, आपकी दी वस्तु हमारे पास है। जब जरूरत जहाँ जैसे पड़े हमें प्रेरित कर देना। हम सेवा कर देंगे। हम दान देने लायक नहीं है, क्योंकि दान अपनी वस्तु का दिया जाता है और वस्तु भगवान की है तो हम क्या दान दे? भगवान की वस्तु जहाँ जरूरत पड़ेगी वह लगा देंगे। वैसे शास्त्रीय नियम में बताया गया है कि 100 में ₹10 धर्म के लिए निकाल देने चाहिए। 10। आंश कहते हैं 100 में ₹10 धर्म के लिए निकाल देना चाहिए कि भाई अगर हमारे पास। ₹100 हैं तो ₹10 रखे किसी धर्म कार्य में जब अवसर आएगा तो हम इसे लगा देंगे। ऐसा शास्त्रीय पर हम कह रहे हैं कि अगर हमें जरूरत है उसको ₹100 की दवा दिलाने की हमने ₹10 निकाल कर ले, तो हम 90 और लगा देते हैं। भैया तुम्हारी दवा 100 की है, तुम जाओ और खाओ और सवस्थ रहो। ऐसे भावना से करना चाहिए अगर दान वाले सिस्टम पे तो फिर अब उसको 90 कहाँ से तो हम 90 का घाटा सह लेंगे, हम तुम्हें पूरे 100 दे देंगे। आज तुम्हें बीमार हो, आज तुम्हें आवश्यकता है तो हम तुम्हारी सहायता करते हैं। ऐसी भावना रखनी चाहिए। वैसे शास्त्रीय नियम दशांत से निकालने का है। कि 100 में ₹10 निकाल के रख दे, कभी तीर्थयात्रा, कभी साधु सेवा, कभी गऊ सेवा, कभी बीमार सेवा उनमें लगा दे। ऐसा इसलिए देने की बात छोड़ो, अपने परिवार का बढ़िया पोषण करो। लड़का बच्चा को बढ़िया पढ़ाओ लिखाओ और जरूरतमंद की सेवा कर दो। कभी कोई भूखा टूटा व्यासा बीमार ऐसा जरूरतमंद दिखाई दे।
bhajanmarg#19
bhajanmarg#19:- महाराज जी:- पापकर्म जो जानते हो कि ये सब पाप कर्म हैं, उन पाप कर्मों से बचो। आजकल तो बहुत गन्दी बातें चल गई, बहुत हानिकारक हो गई। ब्याह हो गया। पति दूसरी से, पत्नी दूसरे से। यह सब बहुत गलत गलत बातें हो रही हैं। और कितना सुन्दर पति हो उसको अपने पति पर संतुष्टता नहीं। कितनी सुन्दर पत्नी हो उसको अपनी पत्नी पर संतुष्टता नहीं। आज हमारे धार्मिक भारत देश में यह जो गन्दी बातें प्रचलित हो गई, कितना मतलब अनिष्ट हो रहा है। पति पत्नी पर विश्वास नहीं रह गया। पति वंचक पर पति रत कराई। रौरव नरक कल्प तत्पर है जो अपने पति को त्याग कर दूसरे पुरुष से सम्भोग करती है वह करोड़ों कल्प तक रौरव नरक में डाली जाती है। बहुत दुःख मिलता है। पर कौन? जब शास्त्र स्वाध्याय नहीं, मनमाने आचरण होते चले जा रहे हैं। इसलिए पुरुष को भी चाहिए अपनी पत्नी के सिवा किसी की तरफ गन्दी दृष्टी न करें। पत्नी को चाहिए अपने पति के सिवा किसी की तरफ गन्दा भाव न रखे। गन्दी दृष्टि करने से पाप बनता है। पाप, अशांति, दुःख, डिप्रेशन यही प्रदान करता है।
प्रतिदिन राधे जाप:-
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🌸🙏 राधे राधे बोलो, प्रेम से बोलो! 🙏🌸
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