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pravachansaar#01 – कैसे लोगों से दोस्ती तोड़ देनी चाहिए?”

pravachansaar#01pravachansaar#01:- भक्त :- महाराज जी , आपकी वानी सुनकर मैंने अपने सारे पुरे आच्छरन छोड़ दिया है।पर महराजी, जिस संगती और मित्रों के साथ हमेशा रही हूँ, अब उनके आच्छरन मुझे विचलित से करने लग गया है। तो महाराज जी , ऐसे में मुझे क्या करना चाहता है। 

premanand ji maharaj :-  मित्र वही है जो कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग में लगावें।यदि आप मित्रों से प्यार करते हैं, वो आप से प्यार करते हैं,तो आपकी बात ऐसी होनी चाहिए कि उनकी गंदी आदते हट जाएं और वो अच्छे आच्छरन वाले बनें।आप स्वेम अच्छे आच्छरन वाले बनें और दूसरों को अच्छे आच्छरन वाले बनाएं।यदि वो अच्छे आच्छरनों को स्वेकार नहीं करते, तो मित्रता तोड़ देनी चाहिए। नहीं, अपने अच्छे आच्छरन चले जाएंगे।कुशंग से किसकी बुद्धी नस्ट नहीं हो जाती है, अरथात सबकी हो सकती है।कितने ऐसे जन हैं, सराप छोड़ दिये सत्संग सुनके, पर मित्रों को नहीं छोड़ पायें।अब मित्रों ने कहा याद हमारी तुमारी दोस्ती की कसम हैं। फिर शुरू हो गया गलत आचरण सब व्यवहार रखना पड़ेगा अगर आप ऐसा विवार नहीं रखेंगे, तो एक ना एक दिन आप भी ब्रेश्ट हो जाएंगे। फिर गिर जाएंगे क्योंकि मन है, वो एक ना एक दिन जिसके संगर आ जाता है, उसका रंग चड़ जाता है। nextpage

pravachansaar#02 – आपसे डर लगता है कि आप सब छुड़वा दोगे!”

pravachansaar#02pravachansaar#02 :- भक्त :- महाराज जी, मैं आपको पिछले कुछ दिनों से सुन रहा हूँ पर आपसे डर सा लगने लग गया है क्योंकि आप सब कुछ छुड़वा दोगे। 

pramanand ji maharaj :- हम किसी की सही चीज़ थोड़ी छुड़वाते सर आप छोड़ दो मानस छोड़ दो परास्त्री से बेविचार छोड़ो गंदे स्वभाव को छोड़ो देख आप अच्छे। बन जाएंगे।

भक्त :- पर मन को तो वही अच्छा लगता है।

pramanand ji maharaj :- नहीं बच्चों को जैसे बाथरूम ले जाओ ना गंदे खेल रहे हो की उनको बढ़िया नहला धुला तो उनको बुरा सा लगता है की मेरी मम्मी जो है ये बुरा काम कर रही है की मुझे नहलाने ले जा रही है लेकिन बालक ये नहीं जानता की अभी सांप स्वच्छ करके कर देंगे। ऐसे ही संत माँ के समान है। तुम्हारी बुराइयों को धोना चाहते हैं तो आप बच्चे के समान उसे डर मानते हैं कि यार मेरी बुराइयां चली जाएंगे, ये तो आप बताओ संत संग से बुराइ के सिवा और क्या जाता है? संत संग से किसी की हानि हुई है क्या? तो दुख सबको ही छोड़ना चाहता है। लेकिन जिन बातों से दुख मिलता है। वो बातें नहीं छोड़ना चाहता संत से ठरने का तो किसी भी तरह कोई संत किसी को थपड़ थोड़ी मारते हैं, किसी को गाली नहीं देते हैं। हाँ, थपड़ मारने और गाली देने का स्वभाव हटवा देते हैं। गंदी बाते हटवा  देते हैं। nextpage

pravachansaar#03 – बच्चा रोने लगे, कोई पुकारे… क्या उस समय पूजा छोड़नी चाहिए?”

pravachansaar#03pravachansaar#03 :- भक्त :- महाराज जी, जैसे हम पूजा पाठ, आरती या माला जप करते हैं तो उसी दौरान बीच में अगर कोई बाधा, किसी की आवाज देना, दरवाजे पर किसी का आना बच्चे का रोना आए तो हम निरंतर पूजा करते रहना चाहिए बीच में पूजा रोक कर। 

pramanand ji maharaj :-  नहीं अपने से पूज्य जलाने पर पूजा रोक देनी चाहिए। ऐसे जनसाधारण की बात तो अलग है। जैसे अपने पूज्य वयोवृद्ध कोई संत, अतिथि कोई अपने पूज्य जन आ रहे हैं तो फिर भगवान को प्रणाम करके पूजा रोक कर उनका आदर करें, उनको बैठा ले, उनको जलपान की व्यवस्था करें, फिर उनसे प्रार्थना करें की हम पूजा कर रहे थे। यदि आपकी आज्ञा हो तो हम अपनी पूजा पूरी कर ले। 

भक्त :- महाराज जी जैसे घर में बच्चा रोने लग गया। उसी समय हम अकेले हैं और कोई आवाज़ दे दे किसी चीज़ के लिए हमसे पूछ ले, प्रश्न कर ले।

pramanand ji maharaj :- हाँ, तो उत्तर दे देना चाहिए और पूजा छोड़कर बच्चे को संभालना चाहिए। बच्चे में भगवान है, वो असंतुष्ट हो रहे है यहाँ तो मूर्ति में भगवान है क्नॉइस। वो तो चैतन्य भगवान है तो चैतन्य भगवान को पहले दूध पिलाये, दुलाल करे और फिर अपने भगवान की आकर पूजा करे, सही पूछो ना जब ये भावनाओं बनने लगती है ना? तो शब में हमारे भगवान हैं। उस समय कोई पूछ रहा है, तुमसे तो भगवान ही पूछ रहे हैं, राधा। और उत्तर दे दिया, फिर राधा। फिर अपनी स्याव, भक्त का शुरुभाव बढ़ा सरल होता है, भक्त मनन है, भक्त जो है, सब का मनन करता है। nextpage

प्रतिदिन राधे जाप :-

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🌸🙏 राधे राधे बोलो, प्रेम से बोलो! 🙏🌸

Summary
pravachan ke saar
bhajanmarg#15 to #17
pravachan ke saar
भजन मार्ग 15 से 17 में प्रेमानंद जी महाराज द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
premanand ji maharaj ke pravachan ka gyaan aur bhakti ka saar -full hindi aur english guide
premamand ji maharaj
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